जयपुर न्यूज डेस्क: सावन का महीना आते ही जयपुर के मंदिरों, धार्मिक आयोजनों और शादी-विवाह में फूलों की मालाओं की डिमांड तेज हो जाती है। इस समय जयपुर की छोटी चौपड़ स्थित फूल और माला मंडी सबसे ज्यादा व्यस्त रहती है। यह बाजार पिछले 60 वर्षों से सक्रिय है और पूरे शहर में फूलों की मालाएं सप्लाई करने का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। यहां से मंदिरों के लिए, मेहमानों के स्वागत के लिए और शादी-ब्याह में वरमाला सहित हर तरह की मालाएं तैयार की जाती हैं।
कारीगरों का कहना है कि सावन में मंदिरों के लिए मालाओं का सबसे ज्यादा ऑर्डर आता है। सुबह से लेकर देर रात तक लगातार मालाएं बनाने का काम चलता है। गुलाब, गेंदा, मोगरा, कुंज, चमेली, जुही, गुडेल, कमल, नीलकमल, चांदनी, टाटारोज, आंकड़ा, धतूरा और हजारा जैसे करीब 50 किस्म के फूल यहां मालाओं में पिरोए जाते हैं। ये फूल देशभर के अलग-अलग हिस्सों से आते हैं—बेंगलुरु, कोलकाता, पुणे, तमिलनाडु, दिल्ली, पुष्कर, अजमेर, कोटा, बूंदी और बरेली इनमें प्रमुख हैं।
यहां मालाओं की कीमत 50 रुपये से लेकर 5,000 रुपये तक होती है। कुछ ग्राहक 20 से 50 किलो तक के फूलों की विशेष मालाएं भी ऑर्डर पर बनवाते हैं। स्थानीय दुकानदारों का कहना है कि जयपुर में किसी भी बड़े आयोजन की कल्पना इस मंडी के बिना अधूरी मानी जाती है। सुबह 3 बजे से यहां दुकानें खुल जाती हैं और देर रात 9 बजे तक मालाओं के निर्माण और बिक्री का काम चलता है। खास बात यह है कि माला बनाने का काम यहां पुरुष करते हैं।
इस मंडी में रोजाना हजारों किलो फूलों की मालाएं तैयार होती हैं, जिनका उपयोग खासतौर पर मंदिरों में होता है। यह बाजार न केवल जयपुर की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, बल्कि सैकड़ों लोगों के लिए आजीविका का साधन भी है। सावन के महीने में यहां का कारोबार लाखों रुपये तक पहुंच जाता है, जिससे यह मंडी जयपुर की पहचान और परंपरा का अहम हिस्सा बन गई है।